Sunday, May 23, 2010

INFORMATION DENIED PROVES COSTLY- WELL DONE SIFFIAN

भिलाई.

सूचना के अधिकार के तहत जानकारी न देना ही नहीं बल्कि विलंब से और भ्रामक जानकारी देना भी दोषपूर्ण है। ऐसे ही प्रकरण में एक आदेश दुर्ग की पूर्व थाना प्रभारी स्वाति मिश्रा के खिलाफ पारित हुआ है।

सेव इंडिया फेमिली के सदस्य एवं प्रार्थी संतराम स्वर्णकार के आवेदन पर राज्य सूचना आयोग ने यह निर्णय दिया है। संतराम स्वर्णकार ने अपनी बहू द्वारा लगाए गए दहेज लेने के आरोप के बाद 24 अगस्त 2008 को दुर्ग महिला थाना में धारा 3 के तहत बहू के मायके वालों पर दहेज देने के जुर्म में अपराध दर्ज करने के लिए आवेदन दिया था जिसपर थाना प्रभारी ने कोई कार्रवाई नहीं की।

इसके बाद प्रार्थी ने 24 सिंतबर 08 को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाकर कार्रवाई के बारे में जानकारी चाही। जिसपर जानकारी न देते हुए थाना प्रभारी ने 29 सिंतबर को उनका एवं उनके पुत्र का बयान लिया और तीन महीने तक कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद प्रार्थी ने 19 फरवरी 09 को प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास अपील की। इसकी सुनवाई 24 अप्रैल 09 को हुई और एक सप्ताह के भीतर थाना प्रभारी ने उन्हें जानकारी दी।

प्रार्थी को वह जानकारी त्रुटिपूर्ण लगी और उन्होंने राज्य सूचना आयोग के समक्ष अपील की। इधर अपील के दौरान प्रार्थी ने बताया कि उन्हें जो जानकारी दी गई है वह त्रुटिपूर्ण है, क्योंकि उन्होंने वधू पक्ष के विरूद्ध भी दहेज देने का प्रकरण दर्ज करने की कार्रवाई चाही थी और उस कार्रवाई का स्पष्ट उल्लेख नहीं है।


इस पर मुख्य सूचना आयुक्त ने प्रकरण में तत्कालीन थाना प्रभारी को विलंब के लिए दोषी पाते हुए अधिनियम की धारा 20(1) के तहत पांच हजार रुपए की शास्ति अधिरोपित की। साथ ही पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि अगर अपीलार्थी के आवेदन पर की गई कार्रवाई में कोई वैधानिक या प्रक्रियात्मक त्रुटि तत्कालीन थाना प्रभारी द्वारा की गई है तो वरिष्ठ अधिकारी से जांच कराई जाए और दोषी पाए जाने पर विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। इसके बाद सूचना आयुक्त ने प्रार्थी को मानसिक क्षति के लिए विभाग की ओर से 5 सौ रुपए हर्जाना देने का भी निर्देश दिया है।

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